संदेश

अप्रैल, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

यह मेरी प्यारी किताब हैं

यह मेरी प्यारी किताब हैं मेरे स्मृति के कोने में, जो शब्दों का भंडार हैं, कुछ ज्ञान की बातें करती, यह मेरी प्यारी किताब हैं। शब्दों की बड़ी महत्ता, अक्षरों से बुनती जाल हैं, वाक्यों से सजी-धजी, यह मेरी प्यारी किताब हैं। कुछ अनकही सी बातें, छुप कर बैठी उदास हैं, जगाती सोये समाज को, यह मेरी प्यारी किताब हैं। पारस पत्थर की तरह हैं, ज्ञान का भरा भंडार हैं, प्रवाह करती अंर्तमन में, यह मेरी प्यारी किताब हैं।। ✍️लिकेश ठाकुर #books #reading #booklover ‌Follow me and subscribe my chhenal Yourquote: https://www.yourquote.in/poetlikeshthakur Blog:- https://www.likeshthakur.blogspot.com Youtube: https://www.youtube.com/channel/UCB8u1BWKQeHy69KuK53KCJw Take a look at poet likesh thakur (@PoetLikesh): https://twitter.com/PoetLikesh?s=01 I'm on Instagram as @poet_likesh_thakur. Install the app to follow my photos and videos. https://www.instagram.com/invites/contact/?i=1vdum2d8m5s0k&utm_content=3buudtm Tiktok:- tiktok.com/@poetlikeshthakur Tumblr: https://likeshthakur.tumblr.com/ Pinterest: ht

मच्छर तुम इंसानों से अच्छे हो

Lockdown 2.0 D3(मुक्तक)@Poem01 मच्छर! तुम इंसानों से अच्छे हो, तुम रक्त रूपी अमृत पी लो, तुम सभ्य कभी नहीं हो पाओगे। मानव की संधारित छवि को, चोट डंक से नहीं पहुँचा पाओगे। तुम मृत्यु के ग्रास में सुसज्जित, जिरह करते-करते मर जाओगे। रंजिश छल कपट बैरी दुनिया की, माया रीत प्रीत समझ ना पाओगे। तुम तो सिर्फ खून ही पीते हो, लोग यहाँ विश्वास घात करते हैं, अधर्म अंधविश्वास की पट्टी बाँधे, मानवता को शर्मसार करते हैं। तुम तो एक बार करोगें चूषण, यहाँ बारम बार करते हैं दूषण। तुम तो थोड़ा भिनभिना लेते हो, काटने के पहले  सतर्क करते हो। कुछ लोग यहाँ पर खंजर घोंपे, देख लगता रक्त की बगिया रोपे।तुम तो अपना काम करते हो, सतर्क इंसां तो तुम भी डरते हो। मच्छर!तुम इंसानों से अच्छे हो।। ✍️कवि लिकेश ठाकुर #life #memes #oneliner #inspriation #politics #longform #philosophy #diary ‌Follow me and subscribe my chhenal Yourquote: https://www.yourquote.in/poetlikeshthakur Blog:- https://www.likeshthakur.blogspot.com Youtube: https://www.youtube.com/channel/UCB8u1BWKQeHy69KuK53KCJw Take a l

हे तरुणी

Lockdown2.0 D2#poem2.2 #श्रृंगार #हे तरुणी, प्रदीप प्रिया तू लतिका रूपी, हरिप्रिया तुम कुछ खास हो, तुझसे ही नर नारायण ऊपजे, तू सृष्टि रचित विधान हो। नाराच धनुष पर चढ़ी प्रत्यंचा, प्रभुता प्रखर ससम्मान हो। तू वारिद सी जब गरज उठे, तीव्र तड़ित उठी चाल हो। व्योम में उमड़े आलोक सी, प्रकृति का प्रदत उपहार हो।। *तरुणी-सुन्दरी;प्रदीप-प्रकाश;लतिका-लताएँ;हरिप्रिया-कमला;नाराच-तीर;प्रत्यंचा-धनुष की डोरी;वारिद-बादल;तड़ित-बिजली;व्योम-आकाश;आलोक-उजाला ✍️लिकेश ठाकुर ‌ Follow me and subscribe my chhenal Yourquote: https://www.yourquote.in/poetlikeshthakur Blog:- https://www.likeshthakur.blogspot.com Youtube: https://www.youtube.com/channel/UCB8u1BWKQeHy69KuK53KCJw Take a look at poet likesh thakur (@PoetLikesh): https://twitter.com/PoetLikesh?s=01 I'm on Instagram as @poet_likesh_thakur. Install the app to follow my photos and videos. https://www.instagram.com/invites/contact/?i=1vdum2d8m5s0k&utm_content=3buudtm Tiktok:- tiktok.com/@poetlikeshthakur Tumblr: https://likeshthakur.tumblr.co

कोरोना योद्धा डॉक्टर्स

Lockdown 2.0  D2#poem 2.1 #कोरोनायोद्धा नन्हीं बेटी बोल रही हैं, पापा दूर क्यों खड़े हो, आ जाओ पास मेरे, अब मुझे गले लगाओ, बहुत दिन हो गए साथ, बैठ खाना नहीं खाये, भाई माँ और मेरा, हाल जानने नहीं आये। दिखते एक ही पोशाक में, कोई राज तो बताओ। हमकों कहीं नही घुमाते, शहर शांत क्यों है बताओ। मुँह बाँधे अलग रहते हो, दुखियों के दुख हरते हो। दूसरों की परवाह करते, ऐसे में सुपरहीरो लगते हो। दिन क्या रात तुम्हारी, छुट्टियां नहीं बड़ी जिम्मेदारी। माँ को रहती चिंता भारी, जब तक नहीं आती गाड़ी।। कवि लिकेश ठाकुर

योद्धाओं पर पत्थर बाजी

फेंके जो पत्थर योद्धाओं पर, वो इंसान नहीं हो सकता। इतना घुला हो जहर मन में, वो देशभक्त नहीं हो सकता।। खुद की परवाह किये बिना योद्धा, किसी मासूमों की जान बचाते हैं। कुछ जयचंदों की झांसे में आकर, मारने घर से द्रोही निकल आते हैं।। मन करता है ऐसे कपटियों को, दो चार जड़ देते हम, यदि उनकी माँ राह ना ताकती, उन्हें वहीं गाड़ देते हम।। #पु•#से• देशभक्त हूँ ये देख मन विचलित हो जाता हैं, गुस्सा बहुत आता है,मन अशान्त हो जाता हैं। लगता है ये अपने थे,पत्थर मारने क्यों आता।। #आम आ• ✍️लिकेश ठाकुर

सूरज भी

सूरज भी अब पूछ रहा,कहाँ गए  सब इतने लोग, सड़कों में अब मौत नहीं,न कोई कृपाण की नोंक। सुनी बस्ती बाजार है,सिर्फ कुत्तों का है शोर। सब बैठे घर पर अपने,नहीं लाँघ रहा है कोई चौक। शुद्ध वायु पर्यावरण हो गई,नव निर्माण का यह घोष। गिरिराज से कन्याकुमारी,बंद पड़ी जुड़ने की डोर। धैर्य ही उत्कर्ष हमारा,बैठे घर पर रहे बेख़ौफ़। इस महामारी से दूर रहेंगे,इसे मिटाएगें हम लोग। कोरा कागज़ हो जाए जीवन,तो भरेंगे पन्नों को रोज। चिड़िया भी सोचती हैं,शांत आसमां क्यों खाली हौज। किरणों का खाली वार हैं,लहरों की है अब मौज। मुर्गो में भी जान आ गई,नहीं कटेगी हमारी चोंच। स्वच्छता अभियान चला,अब शौच करते अंदर लोग। अब आदर सत्कार हैं,बदल रही जनता की सोच।। ✍️लिकेश ठाकुर

गीता और हदीस

गहरी सोच में पड़े हुए हैं, आज अमीर और गरीब। सम अस्तित्व का किरदार हैं, कहते गीता और हदीस। भेदभाव अब मिटा रहा हैं, समान भाव और रक्त बीज।। ✍️कवि लिकेश ठाकुर

दहशत की मंडी में

दहशत की मंडी में कुछ लोग व्यर्थ ही चले आते हैं, खुद तो जख्मी होते हैं औरों को जख्म दे जाते हैं। घाव में मरहमपट्टी के आड़ में बेबसी दिखा जाते हैं, ख़ुद है कितने गहरे पानी में ये हमराज बता जाते हैं। मजहबी अंधत्व का ऐनक कायरता से लगा जाते हैं, अपना ईमान समझ थूकने में कुछ ग़द्दारी दिखा जाते हैं। मूरत एक हैं ईश्वर खुदा की कोई इंसानियत जगा जाते हैं, असलम राजू एक सच्चे दोस्त यहाँ दोस्ती निभा जाते हैं। बैर भाव के कड़वे रस पर कोई अमृत छिड़क जाते हैं, हम सब एक भारत के वासी देशभक्ति दिखा जाते हैं।। ✍️लिकेश ठाकुर

मजहब

मजहब और गरीबी नहीं देखती ये महामारी, कोई आता इसके चपेट में,भुगतती दुनिया सारी। थोड़ा जतन उनका भी कर दो,भूख जिसे हैं मारी। मजहब और गरीबी नहीं देखती ये महामारी।।

शर्मीली लड़की

शर्मीली लड़की कहना तो बहुत चाहती, पर थोड़ा ठहर जाती, मन ही मन ये मुस्कुराती, यहीं बात समझ ना आती। कहीं ख्वाबों में डूबी रहती, मनमोहनी अप्सरा लगती। कोई और नहीं इसके जैसा, ये है शर्मीली लड़की। मीठी-मीठी बातों करती, पर कुछ कहने से डरती। नयनों में कुछ सपनें भरती, कलियों सी वो महकती। कोई और नही मेरे मोहल्ले की, ये है शर्मीली लड़की। जब वो मेरे पास आती, जुल्फ़े खुली हवा में लहराती। बनठन फिरे फिर छिप जाती, फिर शाम को नजर आती। चाँदनी के दीदार के जैसी, ये है शर्मीली लड़की।।

जरूर है

बदल रही ये ज़िन्दगी, भारवाहक हम थे, कुछ दिनों में बहुत से, गम के सिलसिले थे। सोच के मनन विचार के, अंर्तमन में झांक के। सूनी पड़ी थी गलियां, सूने पड़े थे बरामदे। कुछ पल यहाँ ठहरने का, ना था अपने पास समय, आज वो वक़्त आ ही गया, बैठें हम उस बरामदे। कोयल की कू-कू को, कभी सुनने तरसते। बैठें अब अपनों के संग, आज है खिलखिलाते रिश्ते। कोई न कड़वाहट है, गम की ना कोई आहट हैं। सिमट गई अपनी ज़िन्दगी, सूना पड़ा हर फुटपाथ हैं। गैर भी अब देखने को, पल-पल हमें तसरते। अब राहों को भ्रम नहीं, इनसे कोई नहीं गुज़रते। फ़ासले सबके दरम्यान, इक होने को मजबूर है। आकाश भी अब सोचता, हवाओ में शुद्धि पुरजोर हैं। पँछी का मात्र कलरव, अब सुनाई देता चारों ओर हैं। सूरज की किरणें भी, बिखरने को व्याकुल हैं। चाँद भी बड़े मस्ती में, रोशनी अब नवांकुर हैं। बदल रहा अब जमाना, अब हमें बदलना जरूर हैं। चलती धूल आँधियों से, अब हमें टकराना जरूर है। ✍️कवि लिकेश ठाकुर

अस्पताल चाहिए

मंदिर मस्जिद न गिरजाघर चाहिए, देश को सबसे अच्छा अस्पताल चाहिए। सोना की मूर्तियां न बूलेट ट्रैन चाहिए, खाने के लिये गरीब को रोटी चाहिए। वादे झूठे न आरोप-प्रत्यारोप चाहिए, कुछ विकास कर सके ऐसा नेता चाहिए। सब हो निर्भय सभ्य समाज चाहिए, भेदभाव मुक्त हमें ये संसार चाहिए। रोटी खाना और कपड़ा मकान चाहिए, कोई ना मरे किसान ऐसा वादा चाहिए। रंजिशों की गलियों में भाईचारा चाहिए, इर्द दीवाली मनाये कोई दिलवाला चाहिए। बढ़ते रहे कदमों सा इक भाला चाहिए, ढ़ोंग,झूठ का कोई ना बोलबाला चाहिए। मज़हबी अंधविश्वास का देश निकाला चाहिए, शिक्षा हो सर्वश्रेष्ठ ऐसी शाला चाहिए।। ✍️लिकेश ठाकुर https://likeshthakur.blogspot.com