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आज भी शाम गुजर जाएगी

आज भी शाम गुजर जाएगी, मुझकों तन्हा कर जाएगी, तेरी यादों के सहारे अब, क़ातिल रात कट जाएगी। मिलों आहिस्ता चाँदनी रातों को, तुझे देख जुगनू भी शर्माएगी, मधु के पियाले में तेरी झलक, मुझकों पागल कर जाएगी। नयनों से बहती अश्रुओं को, देख शामें इन्हें इक़रार करेगी, मद्धम होता अब इश्क़ नशे में, ये आँखे किस पर ऐतबार करेगी। रूठ गई न जाने क्यों संगदिल, कितना और मुझे घायल करेगी, यादों के कारवाँ में बसी तुम, इन धड़कनों से कब निकलेगी। आज भी शाम गुजर जाएगी, मुझकों तन्हा कर जाएगी।। ✍️©लिकेश ठाकुर

सत्ता के गलियारों में

सत्ता के गलियारों में, कुछ भूखे बैठे सियार हैं। छदम लालची वाणी से, मतों का करते व्यापार हैं। आस लगा बिठाये गद्दी में, सत्ता के नशे में मशगूल हैं। अब दलबदल के खेल में, बिकते नैतिक मूल्य हैं। किसानों की लाचारी अब, मुद्दों में फूंकती जान हैं, नेताजी पैसा चट कर गए, बनाते हीरे जड़ित मकान हैं। वादों से मुकर जाते मियां, अब दर्शन भी दुशवार हैं। सरकारी अब निजी हो रहा, घर-घर बैठा बेरोजगार हैं। आरोप प्रत्यारोपों में ही, रातों रात गिरती सरकार हैं। नींद खुलती चुनाव के पहले, कुछ वादे हो जाते साकार हैं। घोषणाओं की झड़ी लगाकर, बस खिलाते लॉलीपॉप हैं। कोरे अधूरे सपनें दिखाकर, करते विकास का जाप हैं।। सत्ता के गलियारों में, कुछ भूखे बैठे सियार हैं। छदम लालची वाणी से, मतों का करते व्यापार हैं।। ✍️©लिकेश ठाकुर