संदेश

जनवरी, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों में

माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों में,मेरी उम्र नजर आती हैं। हँसती मुस्कुराती हैं तो,मेरी रूह नजर आती हैं।। खो दिया है ख़ुद को, मुझे सभ्य बनाने में, फिर भी तुझसा कोई नहीं, खूबसूरत इस जमाने में। तेरे प्यार की गहराई, मिलती न कहीं दिल लगाने में, सच तू है अहसास तू हैं, वात्सल्य के सिरहाने में। माँ तेरी आँखों के सपनें, जलते देखें तहखाने में, पूरी ज़िंदगी बिता दी तूने, अपना घर संवारने में। तुझे कभी न रोते देखा, किस्मत के दरवाजे में, तुझमें पावन धाम मिलता, चरणों में शीश झुकाने में।। कवि लिकेश ठाकुर

एक आँसू बोल पड़ा

एक आँसू बोल पड़ा,उठ जा अब हो खड़ा, अब वक्त कुछ करने का,जख्मों को तू कर हरा। पाले जो सपनें आँखो में,चीर पहाड़ों का सीना। डगमगा जाए तेरे कदम,मन में भर ले हौसला। एक आँसू बोल पड़ा,नीदों को तूने पछाड़ दिया। कुछ दिन की तो बात हैं,दिल में विश्वास भर जरा। क्यों तन दर्द से कराह रहा,क्यों तू मौहलत मांग रहा। उठ खुद हुंकार भर,लेके ज्ञान का तू भाला। मौत भी ये देख हारेगी,तेरे अंदर का ये जज़्बा। सुकून भरी निग़ाहों से,देखेंगी जब ये जनता। क्या दर्द ,सर्द की पीड़ा में,तू राहों में खड़ा रहा। एक आँसू बोल पड़ा,उठ जा अब हो खड़ा। अब वक्त कुछ करने का,जख्मों को तू कर हरा।।

पतंग

पतंग पहले उठती गिरती संभलती, कई रंगों में सजी पतंग, इठलाती थोड़ा शर्माती, आसमान में उड़ती पतंग। गैरों से मिले सोच कभी, आपस में गले लगाती पतंग, मतभेद और मनभेद हो तो कभी आपस में लड़ जाती पतंग। क्रोध भाव अविचल विरासत, भूल गमों और मुस्कुराती पतंग। रंग बिरंगे कपड़े पहन, मस्त गगन में इठलाती पतंग। हवा से कर दोस्ती का वादा, आँधियों से लड़ती पाती पतंग। हार जाये कभी संघर्ष तो, हवाओ के संग उड़ जाती पतंग। कभी सोचती सूरज को छू लू, लहरों से टकराती पतंग। हौसला लिये तीर्व बाजुओं में, इंसानों की सुनती पतंग। मैं तो इक कठपुतली सी हूँ, मर्जी से न उड़ती पतंग। लालच मुझमें आ ही जाता, देखू जब मुझसे बड़ी पतंग। जंजीर तोड़ भागने का मन करता, बिन मांझे मैं नहीं पतंग। सर्द हवाओं के मौसम में, ठिठुराती मुझको ये पवन, धीरे-धीरे बादलों को छूती, माँझे में फसी इक़ पतंग। बच्चों बूढों की मैं खुशी, तरुणों की मैं तरुणाई पतंग। मैं तो ईशारों में उड़ती, आसमान में होके मगन, मुझमें कुछ सीख समाएँ, ख्वाहिश को जीती पतंग।। पहले उठती गिरती संभलती, कई रंगों में सजी पतंग, इठलाती थोड़ा शर्माती, आसमान में उड़ती पतंग।। रचनाकार ✍️लिकेश ठाकुर