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मैं शराबी बिल्कुल नहीं

मैं शराबी बिल्कुल नहीं, नशा ज़िन्दगी का पाला हैं। मैं फ़रेबी बिल्कुल नहीं, ज़िन्दगी तो एक मधुशाला है। रोज मांगू ईश्वर से कुछ नहीं, खुदगर्जी खुद में पाला है। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, जो दिल में है निकाला हैं। गोते लगा कर ज़िन्दगी को, सकंट में मैंने ऊबारा है। शूलों के जैसे बातें चुभे नहीं, हिम्मत को खुद में पाला हैं। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, इश्क़ का भरा मुझमें प्याला है। होश में कभी बेहोशी नहीं, ख़ुद को बरसों से संभाला है। टूटते अरमां अब नहीं, अटूट साँचे में खुद को ढाला हैं। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, नशा ज़िन्दगी का पाला हैं।। कवि लिकेश ठाकुर

मेरे देश की वीरगाथा का

मेरे देश की वीरगाथा का मेरे देश की वीरगाथा का, विश्व में विस्तार है। विविध धर्मों की रीति का, भारत में विस्तार है। गिरजा मन्दिर मस्जिद का, एक ईश्वर महान है। जो जीवन जीना सीखाता, महापुरुष अवतार है। गौण चरित्र साहसी नारी का, सर्वोच्च सम्मान है। मेरे देश की वीरगाथा का, विश्व में विस्तार है। लक्ष्मी,दुर्गा इतिहास की, जीवित ललकार है। राणा शिव की शौर्यगाथा, शेर सी दहाड़ है। मेरे देश की वीरगाथा का, विश्व में विस्तार है।।       कवि लिकेश ठाकुर

राखी का त्यौहार

राखी का त्यौहार भाई और बहन का प्यार, देखो आया राखी का त्यौहार। खिलते चेहरे पर मुस्कान, आयी घर में खुशियां बहार, मन में उल्लास के दीप जले, रिश्तों में विश्वास घुले मिले, शक्कर चासनी सी मिठास। देखो आया राखी का त्यौहार। कोई शिकवे दिल में अगर, मिटते शिकवे भरे हो ज़हर, कोमल रेशम की डोर बंधे, रक्षा वचन का ध्यान धरे। खुश है बहिन बने मधुर विचार, देखो आया राखी का त्यौहार।। कवि लिकेश ठाकुर

नव भारत हम बनायेंगे

नव भारत हम बनायेंगे वीरों तुम्हारी कुर्बानी का, कर्ज हम चुकायेंगे। भारत के नव निर्माण में, अपना जीवन लगायेंगे। खो चुकी खुशबू मिटटी की, बंजर भूमि उपजायेगे। वातावरण में फैले विष को, साफ स्वच्छ बनाएँगे। बहती हुई नदियों के तट पर, जलधारा पुनः बहायेंगे। सागर के जल के जैसा, सभ्य समाज बनाएंगे। महापुरुषों के सपनों का, नव भारत हम बनाएंगे। विकसित संम्पदा से सृजित, नया जोश जगाएंगे। ऊँचा हो शीश गर्व से हमारा, विश्व में तिरंगा लहरायेंगे। सभ्यता शिक्षा से सृजित, नव भारत हम बनायेंगे। खेल जगत में नाम हमारा, स्वर्ण पदक ले आयेंगे। कोशिश होगी भाईचारा की, हाथ हम बढ़ायेगे। छिप के जो छुरा भोंके, घर घुसके सबक सिखायेंगे। आन बान मर्यादा के खातिर, दुश्मन से लड़ जायेंगे। अर्थविकास समृद्धि योग से, गरीबी दूर भगायेंगे। वित्त व्यवस्था हो सुचारू, नव भारत हम बनायेंगे। कोरी ना हो कल्पना हमारी, अंतरिक्ष में पहुंच बनायेंगे। देश सेवा के लिये बॉर्डर पर, दिल का टुकड़ा भिजाएँगे। शिवाजी सा शौर्य प्रताप हो, ऐसे युवाओ को जगाएँगे। नारी शक्तियों से सर्वसम्पन्न, नव भारत हम बनायेंगे। आदिकला की स

बारिश की फ़ुहारों में

बारिश की फ़ुहारों में बारिश की फुहारों में, भीगने का मन करता है। सौंधी मिट्टी के खुशबू में, बहकने का मन करता है। साथ हो महफ़िल की रौनक, रूह से शर्बत टपकता है। भींगे बदन सुर्ख़ हवा में, दहकने का मन करता है। बारिश की बूंदों सा इश्क़ तू, खो जाने का मन करता है। बारिश की फुहारों में, भीगने का मन करता है। तुम साथ हो भीगें बरखा में, तुममें डूबने का जरिया है। मौसम मस्त हो हम जमीं में, उड़ने को मन करता है। जैसे आज़ाद पँछी गगन के, राहे ढूढ़ने का मन करता है। बारिश की फुहारों में, भीगने का मन करता है।       कवि लिकेश ठाकुर