मैं शराबी बिल्कुल नहीं
मैं शराबी बिल्कुल नहीं, नशा ज़िन्दगी का पाला हैं। मैं फ़रेबी बिल्कुल नहीं, ज़िन्दगी तो एक मधुशाला है। रोज मांगू ईश्वर से कुछ नहीं, खुदगर्जी खुद में पाला है। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, जो दिल में है निकाला हैं। गोते लगा कर ज़िन्दगी को, सकंट में मैंने ऊबारा है। शूलों के जैसे बातें चुभे नहीं, हिम्मत को खुद में पाला हैं। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, इश्क़ का भरा मुझमें प्याला है। होश में कभी बेहोशी नहीं, ख़ुद को बरसों से संभाला है। टूटते अरमां अब नहीं, अटूट साँचे में खुद को ढाला हैं। मैं शराबी बिल्कुल नहीं, नशा ज़िन्दगी का पाला हैं।। कवि लिकेश ठाकुर