दहशत की मंडी में

दहशत की मंडी में कुछ लोग व्यर्थ ही चले आते हैं,
खुद तो जख्मी होते हैं औरों को जख्म दे जाते हैं।
घाव में मरहमपट्टी के आड़ में बेबसी दिखा जाते हैं,
ख़ुद है कितने गहरे पानी में ये हमराज बता जाते हैं।
मजहबी अंधत्व का ऐनक कायरता से लगा जाते हैं,
अपना ईमान समझ थूकने में कुछ ग़द्दारी दिखा जाते हैं।
मूरत एक हैं ईश्वर खुदा की कोई इंसानियत जगा जाते हैं,
असलम राजू एक सच्चे दोस्त यहाँ दोस्ती निभा जाते हैं।
बैर भाव के कड़वे रस पर कोई अमृत छिड़क जाते हैं,
हम सब एक भारत के वासी देशभक्ति दिखा जाते हैं।।
✍️लिकेश ठाकुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हर लम्हा तुझे पुकारूँ

इस जीवन की

गैरों की महफ़िल में