संदेश

जून, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सँभल कर चलना सीख रहा

    * सँभल कर चलना सीख रहा * संभल सँभलकर चलना सीख रहा, यह कपटी जमाने में। पल में रोते हँसते कुछ नेता यहाँ,बेगानो के जनाजो में। उतदंड भीड़ आक्रोशित जन,लगता समय मनाने में। खुश रह सकता पास है जितना,खुशियों को जताने में। महाभारत का युद्ध की जैसी,चली रैली राजधानी में। संघर्षों की ताबीज़ पहनें,कुछ नेता लगे भड़काने में। ना समझ अज्ञान अंधर्विश्वासी जनता,नए इस जमाने में। घाव घृणा का घूट पीकर, लगे वोट भुनाने में। जी जी भईया वादा करते, चौखट के तलखाने से। आधा पूरा कार्यकाल बीत गया,झूठा उत्साह जताने में। दीपक की लौ बुझी पड़ी है,कई बस्ती कॉलोनी में। धनकोष भरपूर निधि को,भरने लगे चुप झोली में। खुदी हुई सड़कें नाले,भरने लगे बरसातों में। दुःखद घटना हो जाये तो, आते शोक जताने को। ऊँचे-ऊँचे वादे करके, हो गए मिले जन जमाने से। अंधत्व की परछाई छा गईं, भ्रष्टों के घरानों में। सँभल सँभल कर चलना सीख रहा,यह कपटी जमाने में। पल में रोते हँसते कुछ नेता यहाँ, बेगानों के जनाजो में।                युवा कवि            लिकेश ठाकुर

जीवन मेरा उपकार भरा है

जीवन मेरा उपकार भरा है, अपनों का भार उठाने को। मुश्कान लिए मुश्किल में होता, अपना कोई मुझे उठाने को। जिजीविषा देख मेरी उम्मीद लिए बैठा है, करता रहा समर्पण मैंने कितनों का अहसान है। भला किया जो करने वाला दुआ देता महान को, चाह मेरी राह बनती खोती हुईं पहचान को। उठा गिरा कदमों के बल पर संघर्ष से भरा जीवन, नव चेतन उमंग फिर से प्रारंभ करता मेरा मन। उपकार न होता मेरे जीवन मे न होता सफल, जब जब मुकाम करू हासिल याद रहे वो क्षण।

याद है पापा की हँसी

*याद है पापा की हँसी* याद है वह दिन जब मै सोता, कठिन डगर थी जब में रोता। हाथ पकड़े जब इतरा के चलता, पिता का साया सिर पर होता। मीठी कोमल हँसी खिलखिलाती, पीठ में जब मेरी बहना चढ़ जाती। जब मैं रोता तो मुझे मनाते, खुद घोड़ा हाथी बन जाते। जिद रहती आसमान से चाँद, एक चाँदनी सी गुड़िया ला दो। सपने उमंग से भरी कुर्बानी, देते पापा खुशिया ढेर सारी। याद है तब सीना गाड़ी बन जाती, माँ की लोरी याद आती। चिलचिलाती धूप में पापा, खुद ओढे न शाल मुझे ओढाते। मेरे लिए दुनिया से लड़ जाते, दुःख होता पर न जताते। रात रात में जाग कर ममी-पापा, करते जतन पहले मुझे सुलाते। कभी कभी पापा मेरे, हीरो से विलेन बन जाते। पता नही था मुझको ये सब, नारियल का खोल कहलाते। जब अकेले पापा होते, टूटी फूटी लोरी कहानी सुनाते। उंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाते, हमेशा पापा मेरे रियल हीरो कहलाते। बहाते पसीना सपनो से समझौता, मेरा हीरो कभी न दुखड़े रोता। ध्यान भाग्य  ये पात्र महानता कभी बेटा,पति,भैया, पिता बन जाता। भूत, वर्त, भविष्य का पालनहारा, कठिन समय पर कभी ना हारा। एक विशालकाय वृक्ष के जैसा, बाधे रिश्तो की डोर औ