शर्मीली लड़की

शर्मीली लड़की

कहना तो बहुत चाहती,
पर थोड़ा ठहर जाती,
मन ही मन ये मुस्कुराती,
यहीं बात समझ ना आती।
कहीं ख्वाबों में डूबी रहती,
मनमोहनी अप्सरा लगती।
कोई और नहीं इसके जैसा,
ये है शर्मीली लड़की।

मीठी-मीठी बातों करती,
पर कुछ कहने से डरती।
नयनों में कुछ सपनें भरती,
कलियों सी वो महकती।
कोई और नही मेरे मोहल्ले की,
ये है शर्मीली लड़की।

जब वो मेरे पास आती,
जुल्फ़े खुली हवा में लहराती।
बनठन फिरे फिर छिप जाती,
फिर शाम को नजर आती।
चाँदनी के दीदार के जैसी,
ये है शर्मीली लड़की।।

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