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ये सुन बटोही देख जरा तू

*ये सुन बटोही देख जरा तू* ये सुन बटोही देख जरा तू, इन वीरों के मार्ग पर, जिसकी छाती है फौलादी, देख डटा हुआ सरहद पर। शेरों सी दहाड़ निकाले, लेटा बर्फ बंजर वीरान भूमि पर, अपनो की याद सजाता, आँसुओ से भीगे है ख़्वाब पर। आतंक का साया मंडराए, हरे-भरे घास या बर्फ पर, पड़ोसी की नीयत में खोट है, छिप वार करता पीठ पर। कल तक था सुपुत्र हमारा, कश्मीर चाहे वार पर, देख बौखलाया फिर रहा है, आतंक पाले अपने छाव पर। मेरे देश का बहादुर सिपाही, सेवानिवृत्त न होता कभी पर, गोली की राजनीति से नेता, दंगे वोट भुनाते है देश भर। देखो कितना मलिन फैल गया, इन वीरो के मार्ग पर, गद्दारों को सजा जो मिलती, शोहरत के आगाज पर। ये सुन बटोही देख जरा तू, इन वीरों के मार्ग पर, जिसकी छाती है फौलादी, देख डटा हुआ सरहद पर।       *युवा कवि*    *लिकेश ठाकुर* likeshthakur.blogspot.com Kavishala.in//likeshthakur

*लहरों का कुछ भी ना दोष*

*लहरों का कुछ भी ना दोष * लहरों का कुछ भी ना दोष, जिधर चले प्रजा वहाँ न होश। फुकट खाने का मन करता, अन्याय होता दिखे पर न रोष।। सर्द की रातों की ठिठुरन, ओढ़ के मखमली कंबल। कुछ को नसीब होता है, कुछ का खोता ठिठुरता बचपन। बैगानी सी इस दुनिया में, अजीब छिपे पात्रो की उलझन। देखो दिखवा करते-करते, थक हार गया लोगो का मन। जिसको मिलनी चाहिए छत, मिलता उनको ख़ौफ़नाक मंजर। कोशिश जारी रखते हुए, खो गयी जवानी और बालपन। रोग लागये लग ही गया, किसी को पैसा पद का घमंड। जिसको मिलनी थी सजा, अपराधी घूम रहा बनठन। सौ बात की एक बात है, कभी ख़ुशी कभी गम में मन। कितना देखो बदल गयी, मेरी संस्कृति का मतलब। नयनों को भी मूंद लेते, देख लाचार गरीबो का निकेतन। हैरत भी तो होती जब, वादा करके मुकरते रहमत। नाममात्र हस्ती को पाने, मासूमों के विश्वास तोड़ करते जतन। क्या सर्द पतझड़ गर्म हवाएं, लूट ख़जाने मौज रईस उठाये। वादे घोषणा जो किये करारे, औंधे मुँह गिरे मतवाले। रोजगार का करके वादा, आलू से निकले सोना क्या फायदा। जीवन का संघर्ष शुरू हो गया, समय बदल रहा मन। कान में रूई भर लिए, कर रहे एक दूजे प