सूरज भी

सूरज भी अब पूछ रहा,कहाँ गए  सब इतने लोग,
सड़कों में अब मौत नहीं,न कोई कृपाण की नोंक।
सुनी बस्ती बाजार है,सिर्फ कुत्तों का है शोर।
सब बैठे घर पर अपने,नहीं लाँघ रहा है कोई चौक।
शुद्ध वायु पर्यावरण हो गई,नव निर्माण का यह घोष।
गिरिराज से कन्याकुमारी,बंद पड़ी जुड़ने की डोर।
धैर्य ही उत्कर्ष हमारा,बैठे घर पर रहे बेख़ौफ़।
इस महामारी से दूर रहेंगे,इसे मिटाएगें हम लोग।
कोरा कागज़ हो जाए जीवन,तो भरेंगे पन्नों को रोज।
चिड़िया भी सोचती हैं,शांत आसमां क्यों खाली हौज।
किरणों का खाली वार हैं,लहरों की है अब मौज।
मुर्गो में भी जान आ गई,नहीं कटेगी हमारी चोंच।
स्वच्छता अभियान चला,अब शौच करते अंदर लोग।
अब आदर सत्कार हैं,बदल रही जनता की सोच।।
✍️लिकेश ठाकुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हर लम्हा तुझे पुकारूँ

इस जीवन की

गैरों की महफ़िल में