विश्व पर्यावरण दिवस कविता *पेड़ हूँ मैं लोगों*

प्रिय विद्यार्थियों,आदरणीय अभिभावकों एवं प्रकृति प्रेमी भाइयों एवं बहनों,आज कोरोना महामारी के दौर में एक महत्वपूर्ण बात तो सभी को पता हैं कि हमारा पर्यावरण स्वच्छ होना कितना जरूरी हैं,इस महामारी के दौरान साँसों की बोली लगते हुये आप सभी ने देखा प्राणवायु के कारण लाखों जान गई उसके हम सब जिम्मेदार हैं,हमारे वातावरण को साफ रखने में पेड़-पौधों की अहम भूमिका रही हैं परंतु हम मानव ने इस खुशनुमा वातावरण में उपस्थित वस्तुओं का सिर्फ अति भोग किया हैं और संरक्षित रखने में कही न कहीं हमनें नजरअंदाज किया हैं, जिसका खामियाज़ा आज इस तरह की भयंकर बीमारियों का वास हमारे शरीर के अंदर बाहर होता जा रहा हैं इस सब का कारण हैं हमारे पर्यावरण का अशुद्ध होना,और वातावरण को शुद्ध रखने में हमारे प्राणदायी सच्चे मित्र,पेड़ पौधे ही हैं,जो हमारे अस्तित्व की धुरी हैं,आये दिन हो रही पेड़ों की अमानक कटाई ,पौधारोपण में नीरसता के कारण आज शुद्ध प्राणवायु ऑक्सीजन की कमी हमारे वातावरण में हो रहीं हैं,इस कमी को दूर सिर्फ पेड़-पौधों को लगाकर और साफ़ सुथरा वातावरण रख कर सकते हैं,
**जिस प्रकार एक नन्हा बालक बड़े होते तक अपने किसी पालक के सानिध्य में रहकर सांस्कृतिक, सामाजिक,व्यवहारिक,शैक्षिक आदि,परिवेश को धारण करता है उसी तरह एक नन्हा पौधे को लगाकर उसकी जड़े जब तक स्वपोषित करने के काबिल नही हो जाती तब सींचना पड़ता तब जाकर उसका अस्तित्व प्रकृति में होता हैं**,आज पर्यावरण के संरक्षण करने हेतु उचित कदम मेरे प्रिय विद्यार्थी एवं उनके जागरूक मार्गदर्शक अभिभावक,प्रकृति प्रेमी ही कर सकते हैं,तो आप सभी इस पर्यावरण दिवस 5 जून को प्रतिज्ञा ले कि प्रतिवर्ष कम से कम 5 पौधे अपने बच्चों या प्रियजनों के साथ लगायेगें ताकि आने वाली प्रतिभावान पीढ़ियों के लिए और हमारे लिए साफ़ स्वच्छ प्राणवायु की व्यवस्था हम कर सके, खुद से प्रतिज्ञा ले कि ये जो पौधा रोपा हैं,उसे बड़े होते तक आप उनकी सेवा करेगें।
विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून
2016 में लिखी मेरी कविता पेड़ की करुण पुकार एवं वर्तमान परिदृश्य के बारे में व्यथा बयां करेगी।
शीर्षक:-*पेड़ हूँ मैं लोगों*

पेड़ हूँ मैं लोगों,
मैं तुम्हारी आत्मा,
समझ सको तो समझो,
मैं हूँ परमात्मा।

मेरा तुम्हारी हर साँसों पर,
जीवन -मरण का नाता।
मेरे आश्रय में बैठे सभी को,
मेरा साया बहुत भाता।

हरी-भरी पत्तियों की माला,
घास जीव की मिष्टि आला।
मुझसे ही संसार का अस्तित्व,
साये में खेले बाल गोपाला।

पेड़ हूँ में लोगों,
मैं तुम्हारी आत्मा,
समझ सको तो समझो,
मैं हूँ परमात्मा।

वनस्पति,जड़ी बूटी,
प्रकृति प्रदत्त माया,
मेरे अंग-अंग में अमृत,
होती रोगमुक्त काया।

क्यों काट रहे मुझे लोगों,
उजड़ रही ये आत्मा।
मेरे बिन दुनिया का लोगों,
एक दिन हो जाएगा खात्मा।

अवैध कटाई सघन वन की, 
मिट्टी ना रहेगी झाड़ियां।
बंजर भूमि चारों ओर दिखेगी,
समतल होंगी पहाड़ियां।

पेड़ हूँ मैं लोगों,
मैं तुम्हारी आत्मा,
समझ सको तो समझो,
मैं हूँ परमात्मा।

आंदोलन खूब चले,चलते हैं,
अब दस्तावेजो में प्रकरण।
सांसो में न रही ताजगी,
धरती ने ओढ़ा विषैला आवरण।

भयानक बीमारियां पैर पसारे,
प्राणवायु ही काम में आये,
बेफिक्र अनजान हम होके,
खुद ही मौत के जाल बिछाये ।

मैं ही मोक्ष की अग्नि हूँ,
मैं ही प्राणी की रागिनी हूँ,
मुझसे ही जीवन की धारा,
रूह में साँसे की बहती बयारा।

वादा करो अब ऐसा ना होगा,
अब शोर शान्ति से गूँजेगा,
क्या बड़े प्यार से सिंचित पौधा,
हर घर परमात्मा जैसा पूजेगा।
पेड़ हूँ मैं लोगों,
मैं हूँ तुम्हारी आत्मा,
समझ सको तो समझो,
मैं हूँ परमात्मा।।
कवि/शिक्षक
लिकेश ठाकुर
©रचना स्वरचित एवं मौलिक
विश्व पर्यावरण दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐💐
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