राहे यदि दुर्गम हो
राहे यदि दुर्गम हो,, राहे यदि दुर्गम हो फिर भी, हर हाल हमें चलना होगा, कोरी कल्पना मन के कोने की, उसे धीरे-धीरे भरना होगा। रुसवा होंगे कभी तेरे अपने, छोड़ना और मनाना होगा, आगे बढ़े चलना राहों पर, परेशानियों से लड़ना होगा। सबक बने चुभें जो काटा, निकाल उसे फेंकना होगा, पगडंडी पर हो कंकड़ पत्थर, उस पर से निकलना होगा। गैरों को अपना बना के, सबकों गले लगाना होगा, इस छोटी सी ज़िन्दगी में, थोड़ा बहुत मुस्कुराना होगा। किसी मोड़ पर रूके खुशी तो , हाल-ए-बयां दिल करना होगा, मन की सच्ची गहराई में, खुद को कभी टाटोलना होगा। पतझड़ के बाद आते कोपल, कलियों सा महकना होगा, धैर्य भरित अविचलित मन से, नवसृजन भी करना होगा। बाधाओं का भरा समंदर, तैर कर पार करना होगा, तलहटी में छिपे मोतियों को, गोते लगाकर पाना होगा।। ✍️लिकेश ठाकुर