तोड़ दो बेड़ियाँ चाहरदीवारी

रिश्तों को बुनने में माहिर,
तुम महान साहसी हो नारी,
नवयुग में उत्थान के खातिर,
तोड़ दो बेड़ियाँ चहारदीवारी।

तीर्व वेग आँसुओं की झंझा,
तुझमें ही दुर्गा महाकाली,
रक्त बीज तुझमें जीव कोपल,
नव सृजन तुझसे ही नारी।

गैरों को अपना बनाने की,
कला बस तुझमें ही नारी,
सभी पात्रों में सर्वश्रेष्ठ हो,
माँ ,बहन ,पत्नी ,दादी,नानी।

सबका अस्तित्व बना रहेगा,
जब तक तू संसार में नारी।
तुझ पर असंख्य लेख लिखे,
प्रेमचंद ने बुनी काव्य कहानी।

खुद को कम न आंकना,
कोई ज़ुल्म न सहना नारी,
नवयुग में उत्थान के खातिर,
तोड़ दो बेड़ियाँ चहारदीवारी।।
✍️©लिकेश ठाकुर

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