बारिश की फ़ुहारों में

बारिश की फ़ुहारों में

बारिश की फुहारों में,
भीगने का मन करता है।
सौंधी मिट्टी के खुशबू में,
बहकने का मन करता है।
साथ हो महफ़िल की रौनक,
रूह से शर्बत टपकता है।
भींगे बदन सुर्ख़ हवा में,
दहकने का मन करता है।
बारिश की बूंदों सा इश्क़ तू,
खो जाने का मन करता है।
बारिश की फुहारों में,
भीगने का मन करता है।

तुम साथ हो भीगें बरखा में,
तुममें डूबने का जरिया है।
मौसम मस्त हो हम जमीं में,
उड़ने को मन करता है।
जैसे आज़ाद पँछी गगन के,
राहे ढूढ़ने का मन करता है।
बारिश की फुहारों में,
भीगने का मन करता है।
      कवि
लिकेश ठाकुर


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