नव भारत हम बनायेंगे
नव भारत हम बनायेंगे
वीरों तुम्हारी कुर्बानी का,
कर्ज हम चुकायेंगे।
भारत के नव निर्माण में,
अपना जीवन लगायेंगे।
खो चुकी खुशबू मिटटी की,
बंजर भूमि उपजायेगे।
वातावरण में फैले विष को,
साफ स्वच्छ बनाएँगे।
बहती हुई नदियों के तट पर,
जलधारा पुनः बहायेंगे।
सागर के जल के जैसा,
सभ्य समाज बनाएंगे।
महापुरुषों के सपनों का,
नव भारत हम बनाएंगे।
विकसित संम्पदा से सृजित,
नया जोश जगाएंगे।
ऊँचा हो शीश गर्व से हमारा,
विश्व में तिरंगा लहरायेंगे।
सभ्यता शिक्षा से सृजित,
नव भारत हम बनायेंगे।
खेल जगत में नाम हमारा,
स्वर्ण पदक ले आयेंगे।
कोशिश होगी भाईचारा की,
हाथ हम बढ़ायेगे।
छिप के जो छुरा भोंके,
घर घुसके सबक सिखायेंगे।
आन बान मर्यादा के खातिर,
दुश्मन से लड़ जायेंगे।
अर्थविकास समृद्धि योग से,
गरीबी दूर भगायेंगे।
वित्त व्यवस्था हो सुचारू,
नव भारत हम बनायेंगे।
कोरी ना हो कल्पना हमारी,
अंतरिक्ष में पहुंच बनायेंगे।
देश सेवा के लिये बॉर्डर पर,
दिल का टुकड़ा भिजाएँगे।
शिवाजी सा शौर्य प्रताप हो,
ऐसे युवाओ को जगाएँगे।
नारी शक्तियों से सर्वसम्पन्न,
नव भारत हम बनायेंगे।
आदिकला की संस्कृति का,
बच्चों में प्रसार करायेंगे।
व्यक्तित्व निर्माण हो शिक्षा से,
सदृढ़ सशक्त नींव बनाएंगे।
कवि
लिकेश ठाकुर
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