अनजाने से रिश्ते
अनजाने से रिश्ते
मिलके गले लगे,
आबाद हुए रिश्ते,
इठला के मुस्कुराने लगे,
एक दूजे को समझते।
मतभेद एक दूजे के,
टकराहट से रिश्ते,
घर की खुशियां रूठ गयी,
अनजाने से रिश्ते।
मिलके फिर एक दफ़ा तुम,
मधुर बना लो रिश्ते,
शिक़वा गिला न रहे,
गले लगा के हँसते।
अपने हो न बनो अजनबी,
यादों की तड़पन में,
माफ़ी भी तुम जरा मांग लो,
अनजाने से रिश्ते।
कच्चे धागे सी डोर है,
सच्चे प्रेम के रिश्ते,
देखो अब भी मान जाओ,
मिटा दो नफऱत की किस्तें।
साथ चाहते जिसके न होते,
जन्नत के फ़रिश्ते,
न रूठो लौट आओ,
अनजाने से रिश्ते।।
*युवा कवि*
लिकेश ठाकुर
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