माँ मैं बड़ा क्यों हो गया।

*माँ मैं बड़ा क्यों हो गया*

माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊं एक बार।
बीता समय शिशु से यौवन,
आज नही पल-पल का साथ।
बड़ा हो गया हूँ फिर भी,
मन रहता हरवक्त साथ।

आँचल में सोने का मन करता,
निष्फ्रिक अब रहता मेरा काम।
बाते बताता दिन रात पर,
नही समय है मेरे पास।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊ एक बार।

याद है जब तेरी लोरी,
सुला देती जब मधुर दुलार।
तू शारदा कमलासना,
अम्बा तुझमें करूणा अपार।
प्रभा मेरे जीवन की वसुधा,
माँ तू ईश्वर का उपहार।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊं एक बार।

माँ तू सन्दूक की चाभी,
घर को कर दिया निस्तार।
सुरसरिता सी लहरों से,
पावन तेरी ममता का गान।
क्रोध भी लगता झूठा,
जब लगा लेती प्रेम नीहार।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊं एक बार।

माँ यमुना सी लहरों सी,
खिलती नर्मदा सी बहार।
श्रद्धा की शक्ति चेतना,
रोदन करुणा वेदना अपार।
दुबके दुबके खेल खिलाती,
गुड़िया मुनी का करती श्रंगार।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया।
शिशु बन जाऊं एक बार।

बनी शक्कर सी चाशनी,
ममत्त्व भूधर सा अपार।
पोटली चने खुद न खाती,
खोले गाँठ मुझे खिलाती।
उथल पुथल अब संसार,
माँ मुझे चाहिए अब तेरा प्यार।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊं एक बार।

कितना प्यार करती हरपल,
तहखाने से असंख्य विचार,
कंचन सी झोली फैलाये,
दौड़ दौड़ आऊ पास।
करता मन गले लगा लू,
न रहता अगर दूर मेरा निवास।
माँ मैं बड़ा क्यों हो गया,
शिशु बन जाऊं एक बार।।
          युवा कवि,शिक्षक
           *लिकेश ठाकुर*

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