देखो बंसन्त ऋतु की आई बहार

देखो बसंत ऋतु की आई बहार,
सर्द का मौसम हुआ गुलजार,
खिल रहे टेसू के फूल उपवन में,
प्रकृति ने रंगों से किया श्रृंगार।

चहचहाते पंछी के कलरव से
महक उठा आँगन घर संसार,
सूर्य किरणों की तेज तपन में,
पेड़ो की छांव का बहुत आभार।

गम में उलझी असंख्य लताएँ,
खुलकर जीने का मिला प्रभार,
संघर्ष ही तो जिंदगी का नाम हैं,
लगन से होते है सपनें साकार।

मय्यसर नही यहाँ सब कुछ पाना,
सहना पड़ता हैं वक़्त का प्रहार,
सीखने में सारी उम्र निकल जाती,
ज़िंदगी हैं खुशी गम का आधार।

©लिकेश ठाकुर

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