सत्ता के गलियारों में

सत्ता के गलियारों में,

कुछ भूखे बैठे सियार हैं।

छदम लालची वाणी से,

मतों का करते व्यापार हैं।


आस लगा बिठाये गद्दी में,

सत्ता के नशे में मशगूल हैं।

अब दलबदल के खेल में,

बिकते नैतिक मूल्य हैं।


किसानों की लाचारी अब,

मुद्दों में फूंकती जान हैं,

नेताजी पैसा चट कर गए,

बनाते हीरे जड़ित मकान हैं।


वादों से मुकर जाते मियां,

अब दर्शन भी दुशवार हैं।

सरकारी अब निजी हो रहा,

घर-घर बैठा बेरोजगार हैं।


आरोप प्रत्यारोपों में ही,

रातों रात गिरती सरकार हैं।

नींद खुलती चुनाव के पहले,

कुछ वादे हो जाते साकार हैं।


घोषणाओं की झड़ी लगाकर,

बस खिलाते लॉलीपॉप हैं।

कोरे अधूरे सपनें दिखाकर,

करते विकास का जाप हैं।।


सत्ता के गलियारों में,

कुछ भूखे बैठे सियार हैं।

छदम लालची वाणी से,

मतों का करते व्यापार हैं।।

✍️©लिकेश ठाकुर

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