आँसू निकल आते हैं
देख दुर्दशा माँ भारती की,
आँखों से आँसू निकल आते हैं,
कुछ लोग खाते भारत का,
पाकिस्तान की गाते हैं।
छल कपट शांत राहों में,
बीज नफरत का उगाते हैं,
हम तो पिछले कुछ दशकों से,
माफ कर उन्हें गले लगाते हैं।
तुमसे कोई हमें बैर नहीं,
वर्षों से जताते जाते हैं।
ज़िहाद फ़रेब का साया ओढ़े,
कश्मीर में घुस जाते हैं।
सीजफायर का कर उलंघन,
घुसपैठ उपजाये जाते हैं।
भूखमरी का रोना रोते,
मासूमियत खूब जताते हैं।
देकर कफ़न नफरतों का,
गोले पत्थर फेंकवाते हैं।
खुद से कुंठित उगलते विष,
अक्सर लताड़े जाते हैं।
✍️✍️लिकेश ठाकुर
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