प्रेम

प्रेम,
मधुर संगीत का अनकहा गान हैं।
दिल,
में उतर जायें तो,यहीं इक संसार हैं।
आँखों,
की गुस्ताखियों से उड़ता हुआ ग़ुबार हैं।
मन,
की चाहतों में,तन का पूरा सिंगार
हैं।
रूह,
की परछाइयों में,दिखता आर-पार हैं।
ओठो,
की सुर्ख़ लाली,बारिश सी फुहार हैं।
कमर,
की लचकन में,आकर्षित यहीं चाल हैं।
प्रेम,
मधुर संगीत का अनकहा गान हैं।
केश,
लताये रूपी,अहसासों का जाम हैं।
धरा,
की मिट्टी में,तुझसे ही तो जान हैं।
पँछी,
उड़ते नभ में,कोयल सी मधुर गान हैं।
पैरों,
में खनकती पायल,झुल्फों की घनी छांव हैं।
प्रेम,
मधुर संगीत का अनकहा गान हैं।।
✍️लिकेश ठाकुर
 

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