दिन फूलों के बीत रहे हैं
दिन फूलों के बीत रहे हैं,
हम उन्हें पानी सींच रहे हैं,
खिलते इक छुवन से मेरे,
हवाओं का रुख़ बदल रहे हैं
माना कि कुछ दिनों से,
हमनें दीदार नहीं किया,
वो हमें बीते लम्हों में ढूंढते,
हम उन पर किताब लिख रहे।
कितने भी हो फासले,
खुद को खुद सँभल रहें हैं,
बड़ी मग्गरूर थी कलियां,
आजकल हमारे दीदार को,
क़ातिल उनकी आँखें तरस रहे।
दिन फूलों के बीत रहे हैं,
हम उन्हें पानी सींच रहे हैं।।
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