याद करों कुर्बानी

अंग्रेजों से लड़ भिड़े,वो इंकलाब की वाणी,
भगत सिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।
देश भक्ति की भट्टीयों में,तपी उनकी जवानी,
वादे प्यासी मोहब्बतों के,सूनी किसी की धानी*।
बालपन से वीर रसों का,रगो में बहती रवानी,
ऐसे महान वीरों की,तुम याद करों कुर्बानी।

क्रांति की मशाल जलाकर,तोड़ी ग़ुलामी की जाली।
अंग्रेजों की छक्के छुड़ा दी,वो इंकलाब की वाणी।
संसद की गूँज ने,गोरों को हिला डाली,
ना डरे ना भागे,देशभक्त थे बड़े अभिमानी।
नरसंहार जालियांवाला का,हिलोरें लेती डाली,
रंजिशों के बादलों ने,क्रांतिकारी बना डाली।
निडर अविचल इरादे,तन मन थे फौलादी,
भगत राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।

गूँगी बहरी अभेद्य दीवारें,तोड़ उन्होंने डाली,
भारत माँ के सपूत थे,वो इंकलाब की वाणी।
देशप्रेम के ख़ातिर मौत को,हँसते गले लगा ली,
भगतसिंह राज सुखदेव की,तुम याद करों कुर्बानी।।
कवि लिकेश ठाकुर
*धानी-रंगीन दुपट्टा

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