आ गया फाल्गुन का महीना

आ गया फाल्गुन का महीना,
खिलने लगे टेसू के फूल,
पेड़ों से टूट पत्ते गिर रहे,
कलरव कर रहे पँछी खूब।

रिश्तों में बंध रहे गुड्डे गुड़िया,
जुड़ते लोग हैं दूर सूदूर।
माँ बाबा की लाड़ो बेटी,
जा रही अब अपनों से दूर।

बसंत बहार पत्ते हिलोरें लेते,
सूरज की रोशनी छायी भरपूर।
रंग बिरंगी दुनिया मुस्कुराती,
बनकर अनजान दुखों से दूर।

भौरें मधुमक्खी करते गुँजन,
तितलियों का अब दिखे समूह।
मिल जाये बच्चों की टोली,
तन पर सनी सड़कों की धूल।

बहुत दिनों बाद दादी नानी से,
सुनते बच्चे कहानी भरपूर।
कोई चढ़ता पेड़ों पर बन बंदर,
कोई खाता आँवले आमचूर।

बिन बस्ता मौज मस्ती में,
ज़िन्दगी लगती बहुत कूल।
कुछ दिन बिताए अपनों संग,
टेंशन की बत्ती हो जाती गुल।
आ गया फाल्गुन का महीना,
खिलने लगे टेसू के फूल।।
✍️कवि लिकेश ठाकुर

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