एक आँसू बोल पड़ा

एक आँसू बोल पड़ा,उठ जा अब हो खड़ा,
अब वक्त कुछ करने का,जख्मों को तू कर हरा।
पाले जो सपनें आँखो में,चीर पहाड़ों का सीना।
डगमगा जाए तेरे कदम,मन में भर ले हौसला।

एक आँसू बोल पड़ा,नीदों को तूने पछाड़ दिया।
कुछ दिन की तो बात हैं,दिल में विश्वास भर जरा।
क्यों तन दर्द से कराह रहा,क्यों तू मौहलत मांग रहा।
उठ खुद हुंकार भर,लेके ज्ञान का तू भाला।
मौत भी ये देख हारेगी,तेरे अंदर का ये जज़्बा।
सुकून भरी निग़ाहों से,देखेंगी जब ये जनता।
क्या दर्द ,सर्द की पीड़ा में,तू राहों में खड़ा रहा।
एक आँसू बोल पड़ा,उठ जा अब हो खड़ा।
अब वक्त कुछ करने का,जख्मों को तू कर हरा।।

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