पतंग

पतंग

पहले उठती गिरती संभलती,
कई रंगों में सजी पतंग,
इठलाती थोड़ा शर्माती,
आसमान में उड़ती पतंग।
गैरों से मिले सोच कभी,
आपस में गले लगाती पतंग,
मतभेद और मनभेद हो तो
कभी आपस में लड़ जाती पतंग।
क्रोध भाव अविचल विरासत,
भूल गमों और मुस्कुराती पतंग।
रंग बिरंगे कपड़े पहन,
मस्त गगन में इठलाती पतंग।
हवा से कर दोस्ती का वादा,
आँधियों से लड़ती पाती पतंग।
हार जाये कभी संघर्ष तो,
हवाओ के संग उड़ जाती पतंग।
कभी सोचती सूरज को छू लू,
लहरों से टकराती पतंग।
हौसला लिये तीर्व बाजुओं में,
इंसानों की सुनती पतंग।
मैं तो इक कठपुतली सी हूँ,
मर्जी से न उड़ती पतंग।
लालच मुझमें आ ही जाता,
देखू जब मुझसे बड़ी पतंग।
जंजीर तोड़ भागने का मन करता,
बिन मांझे मैं नहीं पतंग।
सर्द हवाओं के मौसम में,
ठिठुराती मुझको ये पवन,
धीरे-धीरे बादलों को छूती,
माँझे में फसी इक़ पतंग।
बच्चों बूढों की मैं खुशी,
तरुणों की मैं तरुणाई पतंग।
मैं तो ईशारों में उड़ती,
आसमान में होके मगन,
मुझमें कुछ सीख समाएँ,
ख्वाहिश को जीती पतंग।।
पहले उठती गिरती संभलती,
कई रंगों में सजी पतंग,
इठलाती थोड़ा शर्माती,
आसमान में उड़ती पतंग।।
रचनाकार
✍️लिकेश ठाकुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हर लम्हा तुझे पुकारूँ

इस जीवन की

गैरों की महफ़िल में