मेरे भारत भाग्यविधाता

हे मेरे अन्नदाता,
मेरे भारत भाग्यविधाता।
तुझसे ही संसार की मूरत,
लोगों की हँसती सूरत।
दाने-दाने करें ढेर इकट्ठा,
गरीब अमीर का चूल्हा जलता।
तेरे हाथों में अद्भुत जादू,
बंजर भूमि को कर दे पकाऊ।
समर्थ पसीना तेरे तन का,
मिट्टी बने सोना जड़ित मनका।
रूखी रोटी खाये पहने धोती छोटी,
फिर भी अच्छे से पचती रोटी।
हे मेरे अन्नदाता,
मेरे भारत भाग्यविधाता।
दर्द हारे सुर्ख़ पसीना,
तेरे द्वार पर ना कोई भूखा।
तेरे सपनें खुले आसमान से,
दिखते साफ बड़े अरमान से।
बच्चे तेरे तेरी दुनिया,
मिट्टी में खेले तेरी मुनियाँ।
पत्नी तेरी दुःख में साथ निभाये,
हाथ पैर दर्द करे जब पैर दबाएं।
तुझसे धरती की हैं सुंदरता,
कायाकल्प तू प्रकृति अभियंता।
हे मेरे अन्नदाता,
मेरे भारत भाग्यविधाता।।
कवि लिकेश ठाकुर
 

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