इश्क़ की आग में

इश्क़ की आग में,ख़ुद को जलाना पड़ा,
अश्क भरें नयनों को,दर्द से झूझाना पड़ा।
तू मेरी मैं तेरा इश्क़,सबको बताना ही पड़ा।
खोके दिल का चैन,कुछ पल सुकून भरा।
देती दुहाई तू मुझकों,ख़ुद मुझे कहना पड़ा।
तू वफ़ाओं की रंजिश,तीर खंजर सा लगा।
कह तू देती हँसते,क्यों वफ़ाई करना पड़ा।
आरजू वादों के लिए,तुझे लड़ना पड़ा।
साँझ तेरी महफ़िल में,मुझे आँसू बहाना पड़ा।
रूठी चाँदनी को जगा,मुझे मनाना पड़ा।
वादा सर्द में किये,बारिश तक निभाना पड़ा।
कितने सावन भादों,तुम बिन बिताना पड़ा।
बेहोशी में ख़ुद को,तेरे लिए जगाना पड़ा।
बेपरवाह मेरी तन्हाई को,समझाना पड़ा।
इश्क़ की ये इम्तेहां हैं,ख़ुद को गवाना पड़ा।
चार दिन की ज़िंदगी हैं,मुझे मनाना पड़ा।।

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