गैस त्रासदी की वो रात
गैस त्रासदी की वो रात,
गैस त्रासदी की वो रात,
भूला नहीं कोई वो बात,
अपने साँसों की जतन में,
फिरे शहरों में काँपते हाथ।
बहुत दुखद कातिल वो रात,
किसी ने नहीं पूछा था जात।
दुख की हो रही थी बरसात,
अपना छोड़ रहा था साथ।
बच्चे बूढ़े गिर रहे थे बेआस,
एंडरसन भागा समुद्र पार।
किसी के सपनें टूटे धड़ाम,
दौड़ रहा था लाचार बाप।
कोई मूर्छित कोई विकलांग,
बेदर्द पीड़ा शहर बर्बाद।
बहुत जतन से उठा भोपाल,
स्वच्छता इसकी बेमिसाल।
कोरी साजिशें दफ़न हो गई,
यूनियन कार्बाइड मौत का जाल।
बेमौत मरता माता का लाल,
कहर उठा ठंड में भोपाल।
अब तक वीरां वो जहां है,
जख्म ना भरी वो दास्तान।
तीर्व उन्नति का था प्रतिकार,
कैसे फैला ये विष विकार।
चौखट में मौत करती रही,
मासूमों का निर्मम इंतेजार।
रातों में ओझल होते अपने,
मासूम खोज रहा अपनी माँ।
गलती एक की भूगते सबने,
हीर रांझा के टूटे थे ख्वाब।
असहनीय पीड़ा गम अंजान,
अब भी पीड़ित आम इंसान।
गैस त्रासदी की वो रात,
भूला नहीं कोई वो बात।।
कवि
लिकेश ठाकुर
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