कैसी उधेड़बुन है,मन की अजीब धुन हैं।

कैसी उधेड़बुन है,मन की अजीब धुन है।
चलते रहना ज़िन्दगी,तुझमें बड़ा सुकून है।
खो चुकी आस तो,दिल क्यों?मजबूर है।
मिले जो रास्ते में,ज़िन्दगीका सफर शुरू है।
दर्द के साये है,ग़मों के भरें दस्तुर है।
थकने लगी आँखे तो,पलकें भी मजबूर है।
कैसी उधेड़बुन है,मन की अजीब धुन है।

कोरा कागज़ निर्मम,अधीर हर शख्स है।
बेख्याली मन की,अंगारे से विचल है।
धाक पूरी फ़ैली,दहकती अजीब धुन है।
रोग लगा तन में,ये तन भी बेबस हैं।
ज़िन्दगी तुझसे हम,तुझसे ही कल है।
कैसी उधेड़बुन है,मन में अजीब धुन है।
चलते रहना ज़िन्दगी,तुझमें बड़ा सुकून है।।

कवि
लिकेश ठाकुर

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