इन आँखों में सिर्फ़

इन आँखों में सिर्फ,इक वहीं बसी है,
वो मेरी महबूबा नहीं,मेरी मंज़िल बसी है।
राहे बहुत कठिन है उससे मिलने की,
उसके दीदार को,आँखे दिन-रात जगी है।

इन आँखों में पहली मूरत,मेरे सांसों में बसी है,
वो मेरा पहला प्यार मेरा,अहसास मेरी माँ बसी है।
बहुत दूर है ये आजमाइस, तेरे आँचल में सजी है,
रहगुज़र मेरे जीवन की,मेरे लिये रात जगी है।

इन आँखों में दीवाली की, फुलझड़ी बसी है।
वो आँखो के आँसू से,भीगीं पड़ी है।
याद उसको भी आती,मुझकों भी आती हैं,
पर आँसू छुपा कर,माँ ईश्वर से भी बड़ी है।

वफ़ा वक़्त से,लड़ाई मैंने लड़ी है,
वो अरमान नहीं,इक समय की कड़ी है।
इन आँखों में सिर्फ,इक वहीं बसी है,
वो मेरी महबूबा नहीं,मेरी मंज़िल बसी हैं।।

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