यूँ ही तन्हा जीने से

यूँ ही तन्हा जीने से,उदासी कम नहीं होती,
राह गुज़र जाने से,परेशानी दूर नहीं होती।

कठोर तप्त हौसलों की,उड़ान नहीं रुकती,
शार्गिद बन सीखने से,कमान नहीं रूठती।

साधनों के तालमेल से,आँखे नहीं थकती,
जो भी मिले हल से,मेहनत व्यर्थ नहीं होती।

कायरों के बाजु से,तरकस नहीं निकलती,
रूठ जाये ज्ञान तो,सरस्वती नहीं प्रखरती।

मधुर स्वर सुनाने से,सीरत नहीं बदलतीं,
बनावटी चरित्र से,सूरत सर्वत्र नहीं शोभती।

रंग के उल्लास से,ज़िन्दगी नहीं सुधरती,
नशा हो पैसों का,सुकून की नींद नहीं होती।

दौड़ भाग ज़िन्दगी से,पीठ सीधी नहीं होती,
नोटों पर लेटने से,उम्र दिर्घायु नहीं होती।।

यूँ ही तन्हा जीने से,उदासी कम नहीं होती,
मंजर गुज़र जाने से,परेशानी दूर नहीं होती।

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