दसमुख रावण मन

दसमुख रावण मन,
मुखुटे कब हटाओगे,
मन में कुंठा पाल के,
ख़ुद कब हर्षाओगे।
जो नसीब में लिखा,
शून्य सा बैठ जाओगे।
सुरमयी पथ निर्माण का,
कब स्वप्न सजाओगे।
दर्द रात की बेबसी को,
ख़ुद कब भगाओगे।
चीर हरण नयनों से होते,
शुद्धि मन कब लाओगे।
अच्छाई में भरी बुराई,
कब तक छुपाओगे।
भरके झूली अपनी काके,
बच कहाँ जाओगे।
नजरें लगीं है लोगों की,
रावण सा मर जाओगे।

दसमुख रावण मन,
मुखुटे कब हटाओगे
जाग चुकी नारी शक्ति को,
अब तुम जगाओगे।
ईर्ष्या द्वेष भरे मन को,
निग्रह मुक्त कराओगे।
छिप बैठा रावण मन में,
कब मुक्त कराओगे।
कुंभकर्ण नींद से जागे,
कब तक ढोल बजाओगे।
अत्यारूढ़ि क्रोध मन से,
विनिर्बन्ध कब लाओगे।
दसमुख रावण मन,
मुखुटे कब हटाओगे।
✍️कवि लिकेश ठाकुर
आप सभी को विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
रावण के पुतले का दहन तो बहुत सरल है किंतु (दशहरा - दश का हरण) अत्यधिक कठिन कार्य है।

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