अब कोई गिला नहीं

अब कोई गिला नहीं,
ओंठो को सिला नहीं,
मनभेद तो हो जाता है।
करकें मिन्नतें अपनों से,
सबसे प्यारा रूठ जाता है।
रोग शिकायत का लगा नहीं,
शिकवा मन में पला नहीं,
समझा-समझाकर इंसान,
कुछ वक़्त बाद थक जाता है।
दिखाये खुद को कठोर,
चेहरा में नकली हँसी,
अँधेरो से कभी डरा नहीं,
साथ छूटे तो टूट जाता है।
कितना भी झूठ कहे,
यादों में मुरझा जाता है,
चेहरे पर मुस्कान झूठी हो,
मन बेचैन दिख जाता है।
तेरी अहमियत महफ़िल में,
दिल में आग लगा जाता हैं।
नादान परिंदे से फड़फड़ाते,
दिल मेरे तू तड़पाता है।
कहना चाहे बहुत कुछ,
बहुत कुछ छुपाता है,
कोई गिला हो तेरे दिल में,
बोल ज़ुबान पर क्या?आता हैं।
सच निकले या झूठ निर्मोही,
बोल कुछ तेरा क्या?जाता हैं।
अब कोई गिला नहीं,
ओंठो को सिला नहीं,
मनभेद तो हो जाता है।
करकें मिन्नतें अपनों से,
सबसे प्यारा रूठ जाता है।।
✍️कवि लिकेश ठाकुर
एक दिन शिकवा शिकायत से भी इंसान थक ही जाता है।

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