दिल पर क्या गुज़रती है

दिल पर क्या गुज़रती है

दिल पर क्या गुज़रती है,
कोई साथ छोड़ जाता हैं।
सपनें जैसा लगता सब,
कोई अपना खो जाता हैं।
तीव्र दिल की धड़कन थमे,
जब याद वो कभी आता है।

दिल पर क्या गुज़रती है,
अपना कोई दगा दे जाता हैं,
मीठे-मीठे बोल हुये कड़वे,
जब क़रीब कोई आता है।
सच के पर्दे में बैठा हुआ,
छदम चरित्र दिखा जाता है।

दिल पर क्या गुज़रती है,
कोई विश्वास तोड़ जाता है।
हम समझ बैठते उसे नादान,
गिरगिट सा रंग दिखा जाता।
ठोकरें खाकर हम मानव को,
कुछ समझ नहीं आता है।
अंधविश्वास कर बैठे हम,
आस्तिन का साँप डस जाता हैं।

दिल पर क्या गुज़रती है,
बुराई पीठ पीछे करता है।
सामने तो जब बने सारथी,
अर्थी का इंतजाम करता हैं।
एक दूजे की साझेदारी पर,
अविश्वास हरपल करता हैं।

दिल पर क्या गुज़रती है,
कोई अपना रूठ जाता है।
मनाने के पूरी कोशिश में,
साथ जो हैं छूट जाता है।
कितनी भी हो गैर शिकायतें,
वापस कोई नहीं आता है।।
✍️कवि लिकेश ठाकुर

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