सोचिए तो ज़रा!

सोचिए तो ज़रा!
ये इंसान कहाँ,
किस ओर चल रहा है।
इंसानियत के फ़रेब से,
दुकान चला रहा है।
कुछ करते सही,
कोई अपराध कर रहा है।
मासूम चीखे डरती,
न्याय घुटने टेक रहा है।
झूठ के अँधियारों में,
मोमबत्ती ले चला है।
सोचिए तो ज़रा!!
स्तम्भ देश का,
गरमा गरम न्यूज ढूंढ़ रहा है।
बेकसूर का अब दम,
रोज-रोज घुट रहा है।
तारीखे से मासूम का,
गोश्त गलियों में बिक रहा है।
कहने को बहुत कुछ,
यहाँ सब दिख रहा है।
देख कर भी होश नहीं,
मरने का ज़हर बिक रहा है।।
@लिकेश ठाकुर

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