लो भा गया ये जमाना

लो भा गया ये जमाना

लो भा गया ये जमाना,
कितनी बार कितना मुस्काना।
रंजिश का ये खेल पुराना,
मुश्किल है रिश्ते बचाना।
ओझल नयनों के सपनों से,
अपना इक आशियाना बनाना।

कितने सावन बीत चुके हैं,
अब कितने बचे दिखाना।
बचपन में हम क्या सोचते,
हकीकत था जो बना अफसाना।
धीरे-धीरे समय गया बीतता,
तन-मन को ख़ुद तपाना।
नफरत की ये आँधीयां में,
ख्वाबों को मुश्किल है सजाना।

लो मान गए ये इन बातों को,
कातिल हुआ जमाना।
जीया जाए ना ये जीवन,
अपना होके लागे बेगाना।
संघर्षों की राहों में बैठा,
उम्मीदों का कहाँ मिले खजाना।

द्वेष भाव का ये अलाप जपे जो,
एकता का है पाठ पढ़ाना।
नवभारत की संस्कृति का,
उत्थान जगत में फैले उजियारा।
ज़िंदगी तो अनजाना सफर है,
साथी प्रेम के रस को जगाना।
लो भा गया ये जमाना।।
#लिकेश ठाकुर

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