हाय!क्या रात आई


हाय! क्या रात आई,
अफसानों को साथ लाई।
कहनी थी जो बात जरूरी,
बात जुबां से निकल ना पाई।

घाव जख्मों से हरे भरे है,
बेहाया मरहम साथ ना लाई।
जख्मों को खुरद-खुरद कर,
तन्हा कर मुझे हो गई जुदाई।

आँखों में लहू सा आँसू लाई,
जरूरत थी उसकी की बेवफाई।
टुकड़े बिखरे पड़े हुये दिल के,
ना जोड़ पायेगी कोई दिल लगाई।

चाँद भी सोच रहा होगा,
कैसे दे हाय!रात की गवाही।
ज़िंदगी के सफर में निकले थे,
टूटा सपना हो गई रुसवाई।
हाय!क्या रात आई।
                    @लिकेश ठाकुर

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