गर्मी के मौसम में,एक बेचारी चिड़िया
गर्मी के मौसम में,
एक बेचारी चिड़िया....
दाना पानी के लिये भटके,
उसे दिखे बस खाली मटके।
फूदक-फूदक कर थक जाती,
कभी धूप छांव में आती
चोंच जमीं पर गड़ाती,
चहा-चहा कर फुराती।
अपने बच्चे का देख ये हाल,
दाना लाते-लाते हो जाती बेहाल।
गर्मी के मौसम में,
एक बेचारी चिड़िया....
ची-ची बहुत मधुर आवाज,
होता उससे दिन का आगाज।
सहला कर कुछ देर,
फिर से पँख फैलाती
उड़कर आजाद गगन में
उतर जमीन पर आती।
रंग बिरंगी चिड़ियाँ का गान,
उसके स्वागत में सारा आसमां।
गर्मी के मौसम में
एक बेचारी चिड़िया....
घोसलें बनाने के लिये भटके,
पेड़ गिर रहे है अब कटके।
कुछ तिनके-तिनके से,
आशियाना सबके लिये बनाती।
अंडों से निकले ना बच्चे,
आकर नागिन खा जाती।
हवा आँधी में अस्तित्व को पाने,
लगी रहती अपना घर बचाने।
सूख रहे अब नदी नाले तालाब,
चिड़िया प्यासी फिरे-फिरे तालाब।
गर्मी के मौसम में,
एक बेचारी चिड़िया।।
@कवि लिकेश ठाकुर
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