ये सुन बटोही देख जरा तू
*ये सुन बटोही देख जरा तू*
ये सुन बटोही देख जरा तू,
इन वीरों के मार्ग पर,
जिसकी छाती है फौलादी,
देख डटा हुआ सरहद पर।
शेरों सी दहाड़ निकाले,
लेटा बर्फ बंजर वीरान भूमि पर,
अपनो की याद सजाता,
आँसुओ से भीगे है ख़्वाब पर।
आतंक का साया मंडराए,
हरे-भरे घास या बर्फ पर,
पड़ोसी की नीयत में खोट है,
छिप वार करता पीठ पर।
कल तक था सुपुत्र हमारा,
कश्मीर चाहे वार पर,
देख बौखलाया फिर रहा है,
आतंक पाले अपने छाव पर।
मेरे देश का बहादुर सिपाही,
सेवानिवृत्त न होता कभी पर,
गोली की राजनीति से नेता,
दंगे वोट भुनाते है देश भर।
देखो कितना मलिन फैल गया,
इन वीरो के मार्ग पर,
गद्दारों को सजा जो मिलती,
शोहरत के आगाज पर।
ये सुन बटोही देख जरा तू,
इन वीरों के मार्ग पर,
जिसकी छाती है फौलादी,
देख डटा हुआ सरहद पर।
*युवा कवि*
*लिकेश ठाकुर*
likeshthakur.blogspot.com
Kavishala.in//likeshthakur
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें