भारत के गांवों शहरों में

भारत के गांवों शहरों में,सपनो को बुनते देखा है।
बिन स्वार्थ इंसान को,देश के लिए जीते देखा है।
वो न मांगे घर भरने को,उधार चुकाते देखा है।
सच्ची मेहनत लगन से,दिन रात जागते देखा है।
आजकल नारी शक्ति को,बॉर्डर में रहते देखा है।
बदल रहा है अब वतन,जय हिंद कहते सुना है।
धर्म निरपेक्ष का सपना,लोगों को बुनते देखा है।
ना ख़ौफ़ किसी गर्दिशों से,आतंक से लड़ते देखा है।
लड़ते रहो आपस नेता,लोगों को बदलतें देखा है।
कितना भी भड़के हिंसा,लोगों को गले मिलते देखा है।
भारत के गाँवो शहरों में,सपनो बुनते देखा है।।
              लिकेश ठाकुर

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हर लम्हा तुझे पुकारूँ

इस जीवन की

गैरों की महफ़िल में