याद है पापा की हँसी

*याद है पापा की हँसी*

याद है वह दिन जब मै सोता,
कठिन डगर थी जब में रोता।

हाथ पकड़े जब इतरा के चलता,
पिता का साया सिर पर होता।

मीठी कोमल हँसी खिलखिलाती,
पीठ में जब मेरी बहना चढ़ जाती।

जब मैं रोता तो मुझे मनाते,
खुद घोड़ा हाथी बन जाते।

जिद रहती आसमान से चाँद,
एक चाँदनी सी गुड़िया ला दो।

सपने उमंग से भरी कुर्बानी,
देते पापा खुशिया ढेर सारी।

याद है तब सीना गाड़ी बन जाती,
माँ की लोरी याद आती।

चिलचिलाती धूप में पापा,
खुद ओढे न शाल मुझे ओढाते।

मेरे लिए दुनिया से लड़ जाते,
दुःख होता पर न जताते।

रात रात में जाग कर ममी-पापा,
करते जतन पहले मुझे सुलाते।

कभी कभी पापा मेरे,
हीरो से विलेन बन जाते।

पता नही था मुझको ये सब,
नारियल का खोल कहलाते।

जब अकेले पापा होते,
टूटी फूटी लोरी कहानी सुनाते।

उंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाते,
हमेशा पापा मेरे रियल हीरो कहलाते।

बहाते पसीना सपनो से समझौता,
मेरा हीरो कभी न दुखड़े रोता।

ध्यान भाग्य  ये पात्र महानता
कभी बेटा,पति,भैया, पिता बन जाता।

भूत, वर्त, भविष्य का पालनहारा,
कठिन समय पर कभी ना हारा।

एक विशालकाय वृक्ष के जैसा,
बाधे रिश्तो की डोर और इरादा।

याद है मेरे बचपन के हीरो,
पापा मेरे सुपरहीरो।

याद है वह दिन जब मै सोता,
कठिन डगर थी जब में रोता।

हाथ पकड़े जब इतरा के चलता,
पिता का साया सिर पर होता।।
              *युवा कवि*
  ✍🏻      *लिकेश ठाकुर*
फादर्स डे की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हर लम्हा तुझे पुकारूँ

इस जीवन की

गैरों की महफ़िल में