*एक अटल अमर दीप*

*एक अटल अमर दीप*

चाह नही जलना फिर भी,
जलकर में डटा हुआ।
राह नहीं आँधी से लड़ता,
बूझकर मैं डटा हुआ।

तिमिर होते आतंक के साये से,
डर मुझको भी लगता है।
जलता हूँ खिलखलाते ,
तूफान मुझ पर हँसता है।

न द्वेष़ भाव मेरे मन मे,
यही मेरी सहजता है।
इक रात जलता,
सौ बार बुझता हूँ।
महफ़िल में भी रहकर,
आँधी से भी लड़ता हूँ।

खोती एक पहचान मेरी,
अस्तित्व को पाना चाहता हूँ।
होती खामोशी चारों ओर,
सिसक सिसक के रोता हूँ।
चाह नही जलना फिर भी,
जलकर मैं डटा हुआ।
राह नही आँधी से लड़ता,
बुझकर मैं डटा हुआ।।
      रचनाकार
     लिकेश ठाकुर

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