हास्य कविता
हास्य कविता
*जीवन में कठिनाई बड़ी*
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
बिस्तर तकिया छीन गये,
छीन गई रजाई।
ठंड से बच्चे कांप रहे,
अब टूटी चारपाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
महंगाई दिनों दिन बढ़ रही,
घर में अशांति छाई।
डीज़ल, पेट्रो,गैस,नही,
घर से भागी लुगाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
मर्द परेशान हो रहा,
बच्चे न कर पाए सगाई।
जिंदगी भर की उलझन,
पल-पल याद अब आयी।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
जन-जन घर में भर गए,
छत ना उन्हें सुहाई।
हाल बुरा उस जीवन,
ना हो पायी सबकी पढ़ाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
✍ युवा रचनाकार
लिकेश *ठाकुर*
बरघाट(सिवनी)म.प्र
(वर्तमान निवास भोपाल)
*जीवन में कठिनाई बड़ी*
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
बिस्तर तकिया छीन गये,
छीन गई रजाई।
ठंड से बच्चे कांप रहे,
अब टूटी चारपाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
महंगाई दिनों दिन बढ़ रही,
घर में अशांति छाई।
डीज़ल, पेट्रो,गैस,नही,
घर से भागी लुगाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
मर्द परेशान हो रहा,
बच्चे न कर पाए सगाई।
जिंदगी भर की उलझन,
पल-पल याद अब आयी।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
जन-जन घर में भर गए,
छत ना उन्हें सुहाई।
हाल बुरा उस जीवन,
ना हो पायी सबकी पढ़ाई।।
जीवन में कठिनाई बड़ी,
जब पड़ी घर में काई।
जनसंख्या की वृद्धि से,
घर में हुयी लड़ाई।।
✍ युवा रचनाकार
लिकेश *ठाकुर*
बरघाट(सिवनी)म.प्र
(वर्तमान निवास भोपाल)
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