माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों में
माँ तेरे चेहरे की झुर्रियों में,मेरी उम्र नजर आती हैं। हँसती मुस्कुराती हैं तो,मेरी रूह नजर आती हैं।। खो दिया है ख़ुद को, मुझे सभ्य बनाने में, फिर भी तुझसा कोई नहीं, खूबसूरत इस जमाने में। तेरे प्यार की गहराई, मिलती न कहीं दिल लगाने में, सच तू है अहसास तू हैं, वात्सल्य के सिरहाने में। माँ तेरी आँखों के सपनें, जलते देखें तहखाने में, पूरी ज़िंदगी बिता दी तूने, अपना घर संवारने में। तुझे कभी न रोते देखा, किस्मत के दरवाजे में, तुझमें पावन धाम मिलता, चरणों में शीश झुकाने में।। कवि लिकेश ठाकुर